fact n figure: अपना ही गिरेबां भूल गए निर्मल बाबा

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  • Saturday, April 14, 2012
  • by
  • devendra gautam
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  • आज तक चैनल पर निर्मल बाबा का इंटरभ्यू उनपर लगे आरोपों का खंडन नहीं बन पाया. किसी सवाल का वे स्पष्ट जवाब नहीं दे सके. इस दौरान उनके चेहरे पर नज़र आती बौखलाहट इस बात की चुगली खा रही थी कि वे कोई पहुंचे हुए महात्मा नहीं बल्कि एक साधारण व्यापारी हैं. एक साधारण मनुष्य जो प्रशंसा से खुश और निंदा से दुखी होता है. जिसे राग, द्वेष जैसी वृतियां प्रभावित करती हैं. वे आरोपों का शांति से जवाब नहीं दे सके. यदि उनकी छठी इन्द्रिय सक्रिय है तो क्या उन्हें इस बात का पहले से इल्हाम नहीं हो जाना चाहिए था कि वे विवादों से घिरने जा रहे हैं. इल्हाम होता तो वे इसका सामना करने के लिए मानसिक रूप से तैयार होते और चेहरे पर कोई भाव आये बिना इसके निराकरण का मार्ग तलाश लेते. विवाद उठने के बाद दो दिनों तक उनका चुप्पी साध लेना इस बात को इंगित करता हुआ कि जो कुछ हुआ वह उनके लिए अप्रत्याशित था. उनका इंटरभ्यू देखने के बाद मुझे मजाज़ का एक शेर याद आ गया-
    'सबका तो मुदावा कर डाला अपना ही मुदावा कर न सके 
    सबके तो गिरेबां सी डाले अपना ही गिरेबां भूल गए.'
    जनाब! टीवी चैनलों पर प्रसारित होनेवाले अपने समागम के दौरान वे भक्तों की समस्याओं को सुनते और उनका हल बताते देखे जाते हैं. उनकी तीसरी आंख भक्त तक आती ईश्वरीय कृपा के मार्ग में आने वाली बाधाओं को देख लेती है.उसकी गति को माप लेती है और बाधा हटाने तथा गति बढ़ने के उपाय भी बता देती है लेकिन ईश्वर और स्वयं उनके बीच आनेवाले प्रश्नों का जरा भी आभास नहीं करा पायीं.उनका आधा-अधूरा जवाब तलाशने में भी उन्हें 48 घंटे से ज्यादा वक़्त लग गया. उनके प्रारंभिक जीवन की जो जानकारियां पिछले कई दिनों से विभिन्न माध्यमों से आ रही थीं उन्हें स्वयं अपने भक्तों के बीच रखने में उन्हें क्या परेशानी थी. अपने वेबसाईट पर इन बातों को रखने में हर्ज़ क्या था. यदि वे इंदर सिंह नामधारी के साले हैं और एक ज़माने में कई व्यवसाय कर विफल हो चुके हैं तो इसमें छुपाने जैसी क्या बात थी? उनहोंने स्वयं स्वीकार किया कि उनका टर्नओवर 248 करोड़ का है जिसका वे बाकायदा आयकर चुकाते हैं. भक्तों की दी हुई इस रकम पर सिर्फ उनका अधिकार है. टर्नओवर शब्द व्यवसाय जगत का है. अध्यात्म की दुनिया में टर्नओवर नहीं बल्कि चढ़ावा होता है. टर्नओवर शब्द का अपने मुंह से प्रयोग कर उन्होंने बतला दिया कि वे शुद्ध रूप से व्यापार कर रहे हैं और जो कमा रहे हैं उसका टैक्स जमा कर रहे हैं. वे अपने प्रचार पर खर्च कर रहे हैं और अपने नाम का एक भव्य मंदिर बनाना चाहते हैं ताकि उनके बाद भी भक्तों को उनकी कृपा प्राप्त होती रहे. प्रतिवर्ष 248  करोड़ की रकम वे इसी मकसद से जमा कर रहे हैं. यह मंदिर कहां बन रहा है. इसपर क्या लागत आनी है इसके बारे में उन्होंने कुछ नहीं बताया. अपने किसी समागम में भी इसका जिक्र नहीं किया.बतलाते तो भक्तों को प्रसन्नता ही होती. अपने जीजा और दीदी पर भी उन्होंने आरोप लगाये. कोई संत इतना भावुक नहीं होता. वह तो अपने आप में मस्त रहता है. जाहिर है कि बाबाजी जिन बातों को छुपाना चाहते थे उनका खुलासा होने से परेशान हो उठे. उनकी पोल-पट्टी खुल गयी. यह अलग बात है कि उनकी लोकप्रियता पर इन बातों का कुछ खास असर नहीं पड़ेगा. उनकी दुकानदारी पहले की तरह चलती रहेगी क्योंकि यह भारत है जहां ज्यादा दिनों तक बातें याद नहीं रखी जातीं. जहां विश्वास उठते-उठते उठता है.

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