नरेन्द्र भाई मोदी का प्रधानमंत्री बनना भारत में आए बड़े बदलाव का प्रमाण

कल 26 मई 2014 को नरेन्द्र भाई मोदी साहब ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। उन्हें पिछड़ी जाति का सदस्य माना जाता है। उनका व्यक्तित्व और उनकी विचारधारा जो भी हो लेकिन पिछड़ी जाति के व्यक्ति का प्रधानमंत्री बनना और हज़ारों साल से अपना वर्चस्व बनाए रखने वाली जातियों के सदस्यों का उनके अधीन काम करना एक बड़ा बदलाव है। यह बदलाव एक दिन में और किसी एक व्यक्ति के प्रयास से नहीं आया। 
आदरणीय गौतम बुद्ध ने, महावीर जैन ने, चार्वाक ने और बहुत से दूसरे सुधारकों ने सामाजिक न्याय के लिए वर्ण व्यवस्था को उखाड़ने का काम किया। उनके प्रयासों को विफल करने के लिए वर्ण व्यवस्था के रक्षकों ने उन्हें या तो बेअसर कर दिया या फिर उन्हें अपने अधीन ही कर लिया। जैन-बौद्धों के बेअसर होने के बाद जैसे ही वर्ण व्यवस्था ने अपनी जड़ें जमानी शुरू कीं, तभी मानव की न्याय चेतना में समानता और आध्यात्मिकता के भाव को पुष्ट करने के लिए भारत में मुसलिम सूफ़ियों का आगमन हो गया। वर्ण व्यवस्था के समाानान्तर इसलाम भी हिन्दुंस्तान में अपनी पकड़ बनाता गया। मुसलिम शासकों की ग़ैर ज़िम्मेदारी और उनकी आपसी लड़ाई झगड़ों ने अंग्रेज़ों को भारत में शासन का अवसर दिया। अंग्रेज़ों ने वर्ण व्यवस्था, छूत-छात और ऊंच-नीच जैसी अमानवीय प्रथाओं को रोकने के लिए गंभीर प्रयास किए और इसके लिए उन्होंने हिन्दू समाज में से ही लोगों को खड़ा किया।
वर्ण व्यवस्था के रक्षक भी इन सुधारकों के प्रयास विफल करने के लिए कमर कस कर खड़े हो गए। स्वामी दयानन्द जी और स्वामी विवेकानन्द जी जैसे बहुत से लोगों ने और हिन्दू रजवाड़ों ने शास्त्रीय वर्ण व्यवस्था की रक्षा के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया लेकिन फिर भी वर्ण व्यवस्था ढह ही गई और ऐसी ढह गई कि वर्ण व्यवस्था के रक्षकों के उत्तराधिकारी अब समता और समरसता के लिए ख़ुशी ख़ुशी काम करते देखे जा सकते हैं। उन्हीं के एकजुट समन्वित प्रयासों के नतीजे में कल पिछड़ी जाति के एक व्यक्ति को सत्ता मिली और वेउसे ख़ुशी ख़ुशाी देखते रहने के लिए मजबूर थे.
भारत में आए इस बड़े बदलाव को देखकर हम भी ख़ुश हैं। वर्ण व्यवस्था ढह चुकी है। अब हरेक जाति का व्यक्ति योग्यता का विकास कर सकता है और अपनी योग्यता से वह सत्ता के किसी भी पद पर पहुंचकर समाज को अपनी सेवाएं दे सकता है। नरेन्द्र भाई मोदी साहब के शपथ ग्रहण को भारत के कायान्तरण के रूप में देखा जाना चाहिए। संकीर्ण सांप्रदायिक तत्व भारत के बदलाव को रोक नहीं सकते, फलतः अब वे इसके साथ बहकर ही कुछ लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं। जो लोग जो कुछ लाभ उठाएंगे, वह सब सामने आता ही रहेगा। ये अपनी चाल चल रहे हैं और ज़माना अपनी चाल चल रहा है और हम साक्षी भाव से दोनों को देख रहे हैं। 
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