अरे भई साधो......: यह महंगाई तो सरकार प्रायोजित है

Posted on
  • Saturday, July 16, 2011
  • by
  • devendra gautam
  • in
  • यह महंगाई तो सरकार प्रायोजित है



    एक सोची समझी रणनीति का नतीजा

    16 जुलाई को दैनिक जागरण के प्रथम पृष्ठ पर दो ख़बरों को टॉप बॉक्स बनाया गया था. पहली खबर थी-32 हज़ार में नैनो मकान और दूसरी खबर थी-720 रुपये में मिलेगा गैस सिलेंडर. पहली खबर बीपीएल के लिए थी और दूसरी एपीएल के लिए. एक को सौगात दूसे पर बोझ. दरअसल यही कांग्रेसनीत यूपीए सरकार का गुप्त एजेंडा है. वोटों का एक नया समीकरण बनाने का प्रयास. बांटों और राज्य करो की ब्रिटिशकालीन नीति का नया संस्करण. आजादी के बाद लंबे समय तक ब्रह्मण, हरिजन और मुसलमान के जातीय समीकरण के आधार पर सत्तासुख प्राप्त कार चुकी कांग्रेस इस वोट बैंक के खिसकने के बाद अब बीपीएल-एपीएल के आधार पर समाज को नए सिरे से विभाजित कर बीपीएल मतदाताओं का समर्थन पाने का ख्वाब देख रही है. उसके गणित के मुताबिक बीपीएल संख्या में ज्यादा हैं. वे साथ हो लें तो राजपाट सुरक्षित हो जायेगा. इसीलिए सरकार जानबूझकर सब्सीडी हटा रही है और महंगाई बढ़ा रही है. वह मान चुकी है कि एपीएल का वोट उसे चाहिए ही नहीं. इसीलिए महंगाई के खिलाफ आवाज़ उठने पर उसके नुमाइंदे पूरी बेशर्मी के साथ सीना ठोक कर कहते हैं कि महंगाई तो बढ़ेगी.
    दरअसल कांग्रेस के अंदर मुंगेरीलाल के हसीन सपने देखने वाले अव्यावहारिक, भ्रष्ट और जनविरोधी लोगों की लंबी जमात है. ज़मीनी सच्चाई से उन्हें कुछ लेना-देना है ही नहीं. उनहोंने भारी मात्रा में कालाधन अर्जित कर रखा है और उसकी सुरक्षा के लिए सत्ता पर काबिज़ रहना जरूरी है. आचरण ऐसा नहीं कि जनता उत्साहित होकर समर्थन दे. तिकड़मों के जरिये सत्ता प्राप्त करने की रणनीति बनती रहती है. वातानुकूलित कमरे में बैठकर वोटों का गणित बनाया जाता है. अगर सूझबूझ नाम की कोई चीज होती तो हाल के चुनाओं के नतीजों से कयास लगा लेते कि जनता अब नेताओं की हर अदा को समझ लेती है और वक़्त आने पर उसका माकूल जवाब देती है. सरकार समाज के एक तबके को महंगाई के बोझ से त्रस्त तो कर सकती है लेकिन उसका प्रशासनिक तंत्र इतना भ्रष्ट और असंवेदनशील है कि दूसरे तबके तक राहत नहीं पहुंचा सकता. 32 हजार का नैनो मकान लेने के लिए कितने दलालों को कितनी भेंट चढ़ानी होगी इसे मकान हासिल करने वाले ही समझेंगे और उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं होगी. सत्ता में आने के बाद घोटालों की जो बाढ़ सी आ गयी और विदेशी बैंकों से कालेधन की वापसी की मांग पर लाठी-गोली की भाषा बोलने और सत्याग्रह को कुचल डालने की खुली धमकी को जनता नहीं समझती ऐसा सोचने वाले समय आने पर मुंह के बल गिरेंगे उन्हें इसका अहसास नहीं. भारतीय राजनीति में फिलहाल निहित स्वार्थों के लिए जनता के विरुद्ध इतना खतरनाक खेल खेला जा रहा है कि इसके नतीजे की कल्पना करने पर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. गैर जिम्मेराना बयान देने की तो कांग्रेसी नेताओं में होड़ सी लगी हुई है.

    1 comments:

    मदन शर्मा said...

    आपकी नजरिये से पूरी तरह सहमत |

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